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Kulgeet

जहाँ दिवाकर की ज्योति निर्मल, है दिव्य राका सुरभ्य तारा।
वहीं विद्या भवन हमारा, हमारा, उसे कोटिशः नमन हमारा।।

जहाँ है काशी की पुण्य महिमा, जहाँ है गंगा की शुभ धारा।
जहाँ की सीमा सुविन्थ्यमाला, प्रगल्भ मन की जो सौम्य कारा।।

वहीं हैं विद्या भवन..........................नमन हमारा।।

तपस्थली है जो पद्म सिंह की, जहाँ नरोत्तम की कर्म भू है।
चरणादि गौरव जहाँ सुवासित, मगरहाँ का सुवासित, मगरहाँ का है स्नेह सारा।।

वही हैं विद्या भवन.............................नमन हमारा।
है शूरतायुक्त अतीत जिनका, वीर प्रसविनी जहाँ धरा है।
जहाँ की रज रज में कर्म गौरव, जहाँ की धरती है धर्म सारा।।

वहीं हैं विद्या भवन...............................नमन हमारा।।

जहाँ 'ओम' का 'प्रकाश' शोभित, दूरित दूर करने में न्यारा।
विद्या से अमरत्व प्राप्त कर, भवसागर से लगे किनारा।।

वहीं हैं विद्या भवन.............................नमन हमारा।।

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